प्याज की खेती कैसे की जाती है : आधुनिक तकनीक और पूरी गाइड 2025

प्याज की खेती
प्याज की खेती कैसे की जाती है : आधुनिक तकनीक और पूरी गाइड 2025

प्याज की खेती: रोपाई से लेकर फसल कटाई तक की सभी जानकारी

प्याज का परिचय

प्याज (Onion) एक सब्जी है जो हर भारतीय रसोई में जरूरी है। यह स्वाद बढ़ाने के लिए काम आती है। इसके कई औषधीय गुण भी हैं।

प्याज का वैज्ञानिक नाम Allium cepa है। यह ऐमारिलिडेसी परिवार से है। यह एक द्विवार्षिक पौधा है, लेकिन इसे आमतौर पर एक वर्षीय फसल के रूप में उगाया जाता है।

वैश्विक मांग

विश्व में प्याज की मांग प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। भारत, चीन, अमेरिका, और मिस्र जैसे देश प्याज के प्रमुख उत्पादक हैं। भारत में प्याज की कीमतें अक्सर परिवर्तित होती रहती हैं। ये परिवर्तन वैश्विक बाजार पर भी अपना असर डालते हैं।

गंध और तीखेपन का कारण: गंधक युक्त यौगिक

प्याज की तेज गंध और स्वाद का कारण इसमें गंधक युक्त यौगिक होते हैं। जब प्याज काटा जाता है, ये यौगिक हवा में मिलकर आंखों में जलन पैदा करते हैं।

महत्त्व: सब्जी और मसाले के रूप में

प्याज का उपयोग सब्जी, मसाले और सलाद के रूप में किया जाता है। यह किसी भी व्यंजन को स्वादिष्ट बना देता है। भारतीय व्यंजन में प्याज का तड़का खाने को खास स्वाद और खुशबू प्रदान करता है।

औषधीय गुण

प्याज में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह विटामिन C, आयरन (लोहा), और कैल्शियम (चूना) से भरपूर होता है। इसके सेवन से:

  • पाचन में सुधार होता है।
  • भूख बढ़ती है।
  • आंखों की रोशनी में लाभ होता है।
  • मवेशियों के चारे में इसका उपयोग होता है।
  • यह एक प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में भी काम करता है।
  • ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मददगार है।

प्रमुख उत्पादक राज्य

भारत में प्याज का उत्पादन प्रमुख रूप से निम्नलिखित राज्यों में होता है:

  • महाराष्ट्र
  • कर्नाटक
  • गुजरात
  • राजस्थान
  • उत्तर प्रदेश

प्रमुख उत्पादक देश

विश्व में प्याज के प्रमुख उत्पादक देश हैं:

  • भारत
  • चीन
  • अमेरिका
  • मिस्र
  • ईरान

भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्याज निर्यातक देश भी है। भारतीय प्याज की गुणवत्ता और स्वाद विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है।

सबसे अधिक उत्पादन राज्य: मध्य प्रदेश

हाल के वर्षों में मध्य प्रदेश ने प्याज उत्पादन में जबरदस्त बढ़त हासिल की है और यह भारत का सबसे अधिक प्याज उत्पादन करने वाला राज्य बन गया है। यहां की जलवायु और मिट्टी प्याज की खेती के लिए बहुत अनुकूल है।

प्याज के लिए उपयुक्त मिट्टी

प्याज की सफल खेती के लिए सही मिट्टी का चुनाव बहुत जरूरी है। प्याज के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसमें अच्छी जल निकासी होनी चाहिए। रेतीली दोमट और काली मिट्टी भी प्याज के लिए अच्छी होती हैं।

मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। इससे पौधों को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं। बहुत अधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी प्याज की फसल को नुकसान पहुंचा सकती है।

खेत की अच्छी जुताई करें। इसमें जैविक खाद या गोबर की सड़ी हुई खाद डालें। यह मिट्टी को मजबूत बनाता है। इससे प्याज की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

प्याज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और उपज

प्याज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु ही फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को निर्धारित करती है। प्याज एक शीतोष्ण जलवायु (cool and dry climate) वाली फसल है, लेकिन यह उष्ण और समशीतोष्ण क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाई जाती है।

उपयुक्त तापमान:

  • बीज अंकुरण के लिए: 20°C से 25°C
  • कंद बनने के लिए: 13°C से 24°C
  • बहुत अधिक गर्मी या अत्यधिक ठंड प्याज की वृद्धि को प्रभावित करती है।

प्रकाश और मौसम:

  • प्याज को पूरी धूप (Full Sunlight) चाहिए।
  • फसल को सुखा, ठंडा और कम आर्द्रता वाला मौसम अधिक पसंद होता है, खासकर कंद बनने के समय

उपज:

अगर सही जलवायु, उर्वरक, और सिंचाई दी जाए, तो:

  • एक हेक्टेयर में औसतन 250 से 300 क्विंटल तक प्याज का उत्पादन संभव है।
  • मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में उपज और गुणवत्ता दोनों उच्च स्तर की होती है।

मौसम के अनुसार बीज बोने का समय भी बदलता है – रबी सीजन में अक्टूबर-नवंबर और खरीफ में जून-जुलाई सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।

प्याज की खेती के लिए मौसम, प्याज की बुवाई, रोपाई और कटाई का समय (राज्यवार)

राज्य  मौसम  बुवाई का समय  रोपण का समय  कटाई का समय 
महाराष्ट्र, गुजरात के कुछ भाग  खरीफ  मई – जून  जुलाई – मध्य अगस्त  अक्टूबर – दिसम्बर 
अगेती रबी और पछेती खरीफ  अगस्त- सितंबर का पहला सप्ताह सितम्बर – अक्टूबर  मध्य जनवरी-फरवरी अंत
रबी  अक्टूबर – मध्य नवंबर दिसंबर-जनवरी पहला सप्ताह अप्रैल – मई 
तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश  अगेती खरीफ  मार्च – अप्रैल  अप्रैल – मई  जुलाई – अगस्त 
खरीफ  मई – जून  जुलाई – अगस्त  अक्टूबर – नवंबर 
रबी  सितम्बर- अक्टूबर  नवम्बर – दिसम्बर  मार्च – अप्रैल 
राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश खरीफ  मई के अंत  – जून जुलाई – मध्य अगस्त नवंबर-दिसंबर
रबी  अक्टूबर के अंत – नवंबर मध्य दिसंबर – मध्य जनवरी मई – जून 
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा खरीफ  जून – जुलाई  अगस्त – सितंबर  नवंबर – दिसंबर 
पछेती खरीफ  अगस्त – सितंबर अक्टूबर – दिसंबर  फरवरी  – मार्च 
पहाड़ी क्षेत्र रबी  सितम्बर – अक्टूबर  अक्टूबर – नवम्बर  जून – जुलाई 
ग्रीष्म ऋतु (लंबे दिन का प्रकार) नवम्बर – दिसंबर  फरबरी – मार्च  अगस्त – अक्टूबर 


प्याज की विभिन्न किस्में:-

राज्य  प्याज की किस्में 
कर्नाटक और तेलांगना  नासिक लाल प्याज (एन-53), रॉयल सेलेक्शन प्याज, जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), प्रेमा 178 प्याज
आंध्र प्रदेश  नासिक लाल प्याज (एन-53), जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), प्रेमा 178 प्याज, गुलमोहर प्याज
मध्य प्रदेश  नासिक लाल प्याज (एन-53), गुलमोहर प्याज, लक्ष्मी प्याज के बीज डायमंड सुपर, रॉयल सेलेक्शन प्याज
महाराष्ट्र  नासिक लाल प्याज (एन-53), गुलमोहर प्याज, जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), रॉयल सेलेक्शन प्याज, लक्ष्मी प्याज के बीज डायमंड सुपर
उत्तर प्रदेश  नासिक लाल प्याज (एन-53), रॉयल सेलेक्शन प्याज, जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), प्रेमा 178 प्याज, गुलमोहर प्याज

प्याज उगाने के तरीके

प्याज की खेती के लिए तीन प्रमुख विधियां अपनाई जाती हैं – नर्सरी से पौध तैयार कर रोपाई, कंदिकाओं से हरी प्याज उगाना, और सीधी बुवाई या प्रसारण विधि। सभी विधियों का उपयोग जलवायु, जमीन की स्थिति और खेती के उद्देश्य पर निर्भर करता है।

नर्सरी में बीज से पौध तैयार कर रोपाई

यह सबसे सामान्य और अधिक उत्पादन देने वाली विधि है। इसमें पहले बीजों से नर्सरी में पौधे तैयार किए जाते हैं और फिर उन्हें खेत में रोपित किया जाता है।

नर्सरी प्रबंधन

1. बेड की तैयारी:

  • ऊँचे और अच्छे जल निकासी वाले 1-1.2 मीटर चौड़े बेड तैयार करें।
  • 100 वर्गमीटर के बेड में करीब 8-10 किलोग्राम गोबर की खाद, नीम की खली और हल्की मिट्टी मिलाएं।

2. बीज दर व बीज उपचार:

  • एक हेक्टेयर के लिए लगभग 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • बीज को बोने से पहले फफूंदनाशक (थायरम या कार्बेन्डाजिम 2-3 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें।

3. बुवाई विधि:

  • बीजों को कतारों में 8-10 सेमी की दूरी पर बोया जाता है।
  • बीजों को हल्की मिट्टी से ढकें।

4. सिंचाई और पोषण प्रबंधन:

  • सिंचाई हल्की और समय-समय पर करें।
  • एक बार पौध 40-45 दिन की हो जाए तो रूट ड्रेंचिंग या फॉलिएर स्प्रे से पोषक तत्व देना चाहिए।

हरी प्याज के लिए कंदिकाओं से उगाना

हरी प्याज (spring onion) या साग प्याज की खेती के लिए प्याज की कंदिकाओं (bulblets) का उपयोग किया जाता है। यह विधि विशेष रूप से तेज़ उत्पादन और लोकल मार्केट की मांग को पूरा करने के लिए अपनाई जाती है।

  • कंदिकाओं को छांटकर सीधे खेत में 15-20 सेमी की दूरी पर बोया जाता है
  • यह विधि कम समय में तैयार होती है (40-60 दिन में तुड़ाई)।
  • अधिकतर सब्जी मंडियों में ताजे प्याज साग की भारी मांग रहती है।
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सीधी बुवाई या प्रसारण विधि

सीधी बुवाई विशेषकर बड़े क्षेत्रों में श्रम की बचत के लिए अपनाई जाती है। इसमें बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं।

1. बीज दर:

  • एक हेक्टेयर खेत के लिए 18-20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

2. कतार दूरी व गहराई:

  • कतार से कतार की दूरी: 20-25 सेमी
  • पौधों के बीच दूरी: 10-12 सेमी
  • बीज बोने की गहराई: 1.5-2 सेमी ही रखें।

3. बुवाई का समय:

  • रबी सीजन: अक्टूबर से नवंबर
  • खरीफ सीजन: जून से जुलाई

यह विधि उन किसानों के लिए उपयुक्त है जो कम लागत में प्याज की खेती करना चाहते हैं।

प्याज की खेती के लिए खेत की तैयारी

प्याज की अच्छी उपज पाने के लिए खेत की उचित तैयारी बहुत जरूरी है। अगर खेत की तैयारी सही ढंग से की जाए तो प्याज की जड़ें मजबूत बनती हैं, कंद अच्छे आकार के बनते हैं और फसल रोगमुक्त रहती है।

1. खेत की गहरी जुताई:

  • सबसे पहले खेत की 1-2 बार गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इससे मिट्टी में छिपे रोगाणु और कीट नष्ट हो जाते हैं।
  • इसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई देशी हल या रोटावेटर से करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
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2. मिट्टी का समतलीकरण:

  • जुताई के बाद खेत को समान और समतल कर लें। इससे सिंचाई और जल निकासी में सुविधा होती है।
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3. जैविक खाद और उर्वरक:

  • अंतिम जुताई से पहले प्रति एकड़ में 8-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें।
  • साथ में नीम की खली, वर्मी कम्पोस्ट और सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें।
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4. क्यारियों या बेड की तैयारी:

  • प्याज की रोपाई से पहले उठी हुई क्यारियाँ (raised beds) या समान बेड बनाना जरूरी है।
  • बेड की चौड़ाई लगभग 1-1.2 मीटर, और क्यारियों के बीच में 30 सेमी नाली छोड़ी जानी चाहिए जिससे सिंचाई आसान हो।
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5. सिंचाई सुविधा की व्यवस्था:

  • खेत में सिंचाई की बोरिंग, टपक सिंचाई (drip irrigation) या फव्वारा प्रणाली होनी चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार पानी दिया जा सके।
  • प्याज को ज्यादा या कम पानी दोनों से नुकसान होता है, इसलिए जल निकासी व्यवस्था भी पक्की हो।
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बरसाती प्याज की खेती

बरसाती प्याज की खेती, जिसे खरीफ प्याज की खेती भी कहा जाता है, भारत के कई हिस्सों में जून से अगस्त के बीच की जाती है। इस मौसम में वर्षा अधिक होती है, इसलिए खेत में अच्छी जल निकासी व्यवस्था अनिवार्य होती है। खरीफ प्याज के लिए उपयुक्त किस्मों में न-53, भेल-2, अग्रीकुलर K-55 और अर्ली रेड प्रमुख हैं, जो अधिक नमी में भी अच्छा उत्पादन देती हैं। खेती से पहले खेत की 2-3 बार गहरी जुताई कर, उसमें 8-10 टन गोबर की खाद मिलाई जाती है और ऊँची क्यारियाँ बनाना जरूरी होता है ताकि पानी न रुके। इस मौसम में फफूंद और कीट प्रकोप अधिक होता है, इसलिए कॉपपर ऑक्सीक्लोराइड या मैंकोजेब जैसे फफूंदनाशकों का छिड़काव करें। समय पर बुवाई और प्रबंधन से किसान 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त कर सकते हैं, और बाजार में जल्दी आपूर्ति के कारण उच्च लाभ भी कमा सकते हैं।

प्याज के लिए  खाद की मात्रा:

प्याज के लिए अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा 60:24:24 किलोग्राम/एकड़ है।

पोषक तत्व  उर्वरक  मात्रा  उपयोग का समय 
जैविक  FYM 10 टन / एकड़  आखिरी जुताई के समय 
नाईट्रोजन (N) यूरिया  65 किलोग्राम  बेसल 
65 किलोग्राम  टॉप ड्रेसिंग (प्रत्यारोपण के 20 – 25 दिन बाद)
फ़ास्फ़रोस (P) सिंगल सुपर फॉस्फेट  (SSP) 150 किलोग्राम  बेसल 
पोटेसियम (K) म्यूरेट ऑफ़ पोटाश  (MOP) 40 किलोग्राम  बेसल 
सूक्ष्म पोषक तत्व  अंशुल वेजीटेबल स्पेशल  छिड़काव: 2.5 ग्राम/लीटर पानी अंकुरण के 20-25 दिन बाद.(20 दिनों के अंतराल पर कम से कम 3 छिड़काव करें) 

प्याज के लिए सिंचाई प्रबंधन

प्याज की खेती में सिंचाई का सही प्रबंधन फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर सीधा प्रभाव डालता है। प्याज को नियमित लेकिन हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है क्योंकि इसकी जड़ें सतही होती हैं। पहली सिंचाई रोपाई या बुवाई के तुरंत बाद करें और उसके बाद हर 7-10 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें। अत्यधिक पानी से कंद सड़ सकते हैं और फफूंदजन्य रोग बढ़ते हैं। इसके लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली सबसे उत्तम मानी जाती है क्योंकि यह जल की बचत करते हुए पौधों की जड़ों तक सीधी नमी पहुँचाती है। कटाई से 10-12 दिन पहले सिंचाई रोक दें, जिससे कंद अच्छी तरह सूखकर भंडारण योग्य बन सकें। जल निकासी की उचित व्यवस्था फसल को रोगों से बचाती है और उत्पादन में वृद्धि करती है।

प्याज में खरपतवार प्रबंधन

प्याज की खेती में खरपतवार नियंत्रण करना बेहद जरूरी है, क्योंकि खरपतवार फसल से पोषक तत्व, पानी और धूप के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इससे कंद का विकास प्रभावित होता है और उत्पादन घटता है। प्याज में पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन बाद और दूसरी 40-45 दिन बाद करें। साथ ही, मल्चिंग या जैविक आवरण से खरपतवार की वृद्धि रोकी जा सकती है। रासायनिक नियंत्रण के लिए पेंडिमिथालिन (Pendimethalin 1 kg/ha) का उपयोग बुवाई के तुरंत बाद किया जा सकता है, लेकिन इसे सावधानीपूर्वक प्रयोग करें। समय पर खरपतवार नियंत्रण से प्याज की गुणवत्ता और उपज दोनों में सुधार आता है।

फसल चक्र और मिश्रित फसल

प्याज की खेती में फसल चक्र (Crop Rotation) और मिश्रित फसल (Mixed Cropping) अपनाना भूमि की उर्वरता बनाए रखने और कीट-रोगों की रोकथाम के लिए जरूरी होता है। प्याज के बाद खेत में दालें (चना, मटर) या अनाज (गेहूं, ज्वार) जैसी फसलें उगाना मिट्टी को संतुलित पोषण देता है और फसल को बीमारियों से बचाता है। मिश्रित फसल के रूप में प्याज को गाजर, धनिया, पालक जैसी फसलों के साथ उगाया जा सकता है, जिससे किसान को अतिरिक्त आय भी होती है। इससे खेत की उपयोगिता बढ़ती है और प्राकृतिक कीट नियंत्रण भी आसान हो जाता है। फसल चक्र अपनाने से उत्पादन में निरंतरता और मिट्टी की सेहत बेहतर बनी रहती है।

भारत में प्याज के विकसित प्रभेद एवं उनकी विशेषताएं

प्रभेद का नाम रंग/आकार उपज क्षमता (टन/हेक्टेयर) विशेषताएं
पूसा रेड लाल, गोल 20-30 टन/हें. अच्छा भंडारण, किसी भी क्षेत्र में अनुकूलन क्षमता
पूसा रत्नार गहरा लाल, बड़ा गोल 30-40 टन/हें. उच्च उपज देने वाला प्रभेद
पूसा माधवी हल्का लाल 30-35 टन/हें. बेहतर भंडारण योग्य
पंजाब सेलेक्शन हल्का लाल 20 टन/हें. सामान्य उपज क्षमता
एन-53 गहरा लाल 15-20 टन/हें. खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त
अरका निकेतन हल्का लाल 33 टन/हें. भंडारण में उत्कृष्ट
अरका कल्याण गहरा लाल 33 टन/हें. भंडारण में अच्छा, आकार सुंदर
अरका बिंदु चमकीला गहरा लाल 25 टन/हें. 100 दिनों में तैयार, निर्यात के लिए उपयुक्त
बसवंत 780 चमकीला लाल जानकारी नहीं आकर्षक रंग, व्यापारिक उपयोग के लिए उपयुक्त
एग्री फाउंड लाइट रेड हल्का लाल 30 टन/हें. भंडारण में अच्छा, अच्छी पैदावार
पंजाब रेड राउंड लाल, गोल 30 टन/हें. रबी मौसम के लिए उपयुक्त
कल्याणपुर रेड राउंड गहरा लाल, गोल 30 टन/हें. सुंदर आकार, अच्छे उत्पादन क्षमता
हिसार-II हल्का लाल 20 टन/हें. सामान्य उपयोग के लिए उपयुक्त


भारत में प्याज के विकसित प्रभेद एवं उनकी विशेषताएं

प्रभेदों के नाम विशेषताएं
पूसा रेड लाल रंग, गोल, उपज 20-30 टन/हें., भंडारण में विशेष अच्छा तथा कहीं भी अपने को समायोजित करने की क्षमता।
पूसा रत्नार गहरा लाल प्रभेद, गोलाकार बड़ा, 30-40 टन/हें. उपज क्षमता।
पूसा माधवी हल्के लाल रंग, अच्छा भंडारण क्षमता, 30-35 टन/हें. उपज क्षमता।
पंजाब सेलेक्शन हल्का लाल, उपज क्षमता 20 टन/हें., एन-53 गहरा लाल, उपज क्षमता 15-20 टन/हें., खरीफ फसल के लिए उपयुक्त।
अरका निकेतन हल्का लाल, उपज क्षमता 33 टन/हें., भंडारण के लिए उपयुक्त।
अरका कल्याण गहरा लाल, उपज क्षमता 33 टन/हें., भंडारण के लिए उपयुक्त।
अरका बिंदु चमकीला गहरा लाल, 100 दिनों में तैयार, 25 टन/हें. निर्यात के लिए उपयुक्त।
बसवंत 780 चमकीला लाल।
एग्री फाउंड लाइट रेड हल्का लाल, भंडारण में अच्छा, उपज क्षमता 30 टन/हें. ।
पंजाब रेड राउंड लाल, उपज क्षमता 30 टन/हें. ।
कल्याणपुर रेड राउंड गहरा लाल, गोल, उपज क्षमता 30 टन/हें. ।
हिसार-II हल्का लाल, उपज क्षमता 20 टन/हें. ।

प्याज की फसल में लगने वाले कीट एवं प्रबंधन:-

कीट  लक्षण  निवारक उपाय 
थ्रिप्स / तेला  थ्रिप्स से प्रभावित पत्तियां मुड़ जाती हैं।पत्तियों पर चांदी जैसे धब्बे दिखाई देते हैं।विकृत पत्तियाँ तथा पौधों का मुरझाना तथा सूखना। नीम 0.3% 2.5 – 3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।डेलीगेट कीटनाशक का 0.9 – 1 मिली/लीटर पानी में छिड़काव करें।क्यूराक्रेन  कीटनाशक का 2.5 मिली/लीटर पानी में छिड़काव करें।
हेड बोरर  यह कीट फूल के डंठल को खुरेदकर खाते हैं। यह कीट प्याज के बल्ब में प्रवेश कर छेद कर देते हैं, जिससे   बल्ब के शीर्ष के पास छोटे, गोल छेद दिखाई देते हैं। इस कीट का लार्वा प्रवेश छिद्रों के पास मलमूत्र की छोटी-छोटी गोलियां छोड़ जाते हैं। फ़नल ट्रैप के साथ प्रति एकड़ 6 तपस हेलिक-ओ-ल्यूर का उपयोग करें।0.5 – 1 मिली सन बायो हैनपवी को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।एकलक्स कीटनाशक 2 मि.ली./लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।सिग्ना कीटनाशक 1.5 – 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
प्याज का मक्खी कीट  कीट प्याज के बल्ब में सुरंग बनाकर उसके गूदे को खा जाते हैं, जिससे बल्ब को नुकसान पहुंचता है।यह पौधों की जड़ों को खाते हैं, जिससे पौधों का  विकास रुक जाता है।प्रभावित पौधे पीले पड़ जाते हैं और बाद में मुरझा जाते हैं। वयस्क मक्खियों को नियंत्रित करने के लिए 1 एकड़ के लिए 4 बैरिक्स कैच वेजिटेबल फ्लाई ट्रैप का उपयोग करें।अलीका कीटनाशक 0.5 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।कीफन कीटनाशक 2 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कटवर्म इसके युवा लार्वा कोमल पत्तियों को खाते हैं जिससे वे मुरझा जाते हैं, पीले या भूरे हो जाते हैं।बाद में, जैसे-जैसे यह कीट बड़े होते हैं छोटे प्याज के पौधों को तने के आधार से काट देते हैं और पीछे कटे हुए किनारे या छेद छोड़ देते हैं, जिससे पौधे पूर्ण रूप से मुरझाकर मर जाते हैं। वेदाग्ना नोबोर का 2.5 – 3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।ब्यूवेरिया बैसियाना (डॉ बैक्टो) को 1 – 1.5 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।प्लेथोरा कीटनाशक का 2 मि.ली./लीटर पानी में छिड़काव करें।
एरीओफाइड मकड़ी / पित्त कण यह कीट पत्तियों की परतों के बीच की नई पत्तियों को खाते हैं एवं गॉल बना देते हैं। पत्तियाँ किनारों पर पीली धब्बेदार हो जाती हैं।संक्रमित पौधों की पत्तियाँ मुड़ जाती हैं और पूरी तरह से नहीं खुल पाती हैं।  नीम के तेल के अर्क को 1 – 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।रॉयल क्लियर माइट को 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करेंसेडना कीटनाशक का 1-1.5 मिली/लीटर पानी में छिड़काव करें।ओबेरॉन कीटनाशक का 0.3 मिली/लीटर पानी में छिड़काव करें।
लाल मकड़ी / रेड स्पाइडर माईट  इसके निम्फ और वयस्क पत्तियों की निचली सतह को खाते हैं, जिससे पत्तियों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। पत्तियों पर जाल बन जाते हैं। गंभीर मामलों में प्रभावित पत्तियों पर पीले या कांस्य के रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं।  टेरा माइट का 3.5 – 7 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।मियोथ्रिन कीटनाशक का 0.5 मिली/लीटर पानी में छिड़काव करें।मोवेंटो एनर्जी कीटनाशक का 0.5 – 1 मिली/लीटर पानी में छिड़काव करें।


प्याज की फसल में लगने वाले विभिन्न रोग:-

रोग  लक्षण  निवारक उपाय 
डैम्पिंग ऑफ / आर्द्र गलन रोग तनों का मुरझाना और गिरना।संक्रमित पौधों के तने भूरे या काले हो जाते हैं। जड़ों में सड़न पैदा जाती है। संक्रमित पौधे सूखे हुए दिखाई दे सकते हैं। अमृत एलकेयर तरल का 2 – 3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।1 किलोग्राम बीज को 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा विराइड से उपचारित करें।मिट्टी को रिडोमिल गोल्ड 1 – 1.5 ग्राम/लीटर पानी से भिगोएं। 
बेसल रॉट / बेसल सड़ांध प्याज के पौधे के आधार पर मुलायम, गूदेदार सड़ांध, पैदा हो जाती है,  जिससे पौधा सड़ कर गिर जाता है।पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं और बाद में सूख जाती हैं। 1 किलो बीज को 3 ग्राम विटावैक्स पाउडर से उपचारित करें।रोपाई से पहले अंकुर को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/लीटर पानी में डुबोएं।मिट्टी को धानुस्टिन कवकनाशी 0.5 – 0.8 ग्राम/लीटर पानी से भिगोएँ।मिट्टी को 1-2 ग्राम प्रति लीटर पानी में ब्लू कॉपर कवकनाशी से भिगोएँ।
कोमल फफूंदी पत्तियों की निचली सतह पर भूरे फफूंद जैसे धब्बों का विकास हो जाता है, जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं।संक्रमित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ना शुरू हो जाती हैं और अंततः भूरी होकर सूखी जाती हैं।  अमृत एलकेयर तरल का 2 – 3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।डाउनी रेज़ बायो कवकनाशी को 2.5 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।डाइथेन एम45 कवकनाशी का 2 – 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।अमिस्टार टॉप कवकनाशी का 1 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
स्टेमफाइलम ब्लाईट / तना झुसला रोग  प्रभावित पत्तियों के मध्य में छोटी-छोटी पीली से नारंगी रंग की धारियाँ बन जाती हैं। बाद में, पानी से लथपथ धारियाँ बड़ी हो जाती हैं और आपस में जुड़ जाती हैं, जिससे गुलाबी रंग के किनारे वाले अनियमित या स्पिंडल आकार के धब्बे विकिसित हो जाते हैं। प्रति लीटर पानी में 5-10 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस और बैसिलस सबटिलिस को मिलाकर छिड़काव करें।इंडोफिल एम-45 को 0.8 – 1 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।ब्लाइटोक्स कवकनाशी का 1 – 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
जीवाणुयुक्त भूरा सड़न/ जीवाणु बिल्ट  बल्बों की गर्दन पर भूरे, पानी से लथपथ धारियाँ/धब्बे दिखाई देते हैं।संक्रमित ऊतक मुलायम और चिपचिपे हो जाते हैं, साथ ही दुर्गंध भी आने लगती है। ·जियोलाइफ जियोमाइसिन को 0.5 – 1 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।धानुका कासु-बी कवकनाशी को 2 – 2.5 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
स्मट रोग  ·प्रभावित पत्तियों के आधार एवं सतह पर काले, पाउडरनुमा   बीजाणु के धब्बे दिखाई देते हैं।प्रभावित पत्तियां नीचे की ओर झुक जाती है। बीजों को वीटावैक्स पाउडर 3 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें।बुवाई से पहले बल्ब को 1 लीटर पानी में 20 मिली ट्राइकोडर्मा विरिड के घोल में डुबोएं।2-2.5 ग्राम/लीटर पानी में डाइथेन एम45 छिड़कें।
सफ़ेद सड़न  पत्तियों की नोक पीली एवं मुरझा जाती है।क्षयकारी शल्कों और बल्ब के आधार पर सफेद, रुईदार फफूंद का विकास हो जाता है। बल्ब पूरी तरह सड़ जाते हैं। फसल चक्र अपनाएं।बुवाई के लिए साफ बीजों का प्रयोग करें।1 किलो बीज को 2-3 ग्राम रोको फफूंदनाशक से उपचारित करें।कात्यायनी तेबुसुल टेबुकोनाज़ोल फफूंदनाशी का 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
प्याज का बैंगनी धब्बा रोग  प्रभावित पत्तियों पर छोटे, अनियमित बैंगनी धब्बे विकसित हो जाते हैं। बाद में यह धब्बे आकार में बड़े हो जाते हैं और आपस में मिलकर एक बड़े धब्बे का निर्माण हो जाता है। धब्बों का मध्य भाग बैंगनी रंग की सीमा से घिरा हुआ होता  है। ट्राइकोडर्मा विरिड 3 ग्राम/लीटर पानी की दर से छिड़काव करेंकस्टोडिया कवकनाशी या स्पेक्ट्रम कवकनाशी 1.5 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।कैब्रियो टॉप कवकनाशी को 1.2 – 1.4 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
एन्थ्रेक्नोज़ इससे प्रभावित पत्तियां मुड़ जाती हैं और पत्ती के ब्लेड पर पानी से लथपथ हल्के-पीले धब्बे विकसित हो जाते हैं।  रोको कवकनाशी का 0.5 ग्राम/लीटर का छिड़काव करें।धानुका एम45 को 3-4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
नैक सड़न संक्रमित प्याज की गर्दन नरम और पानीदार हो जाती है, जिससे प्याज गिर सकता है।संक्रमित गर्दन भूरी या काली हो सकती है।संक्रमित प्याज से दुर्गंध आती हैसंक्रमित प्याज की गर्दन छूने पर स्पंजी हो सकती है।  भंडारण से पहले उचित सुखाने को सुनिश्चित करें।कटाई से पहले कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव करें।
येलो ड्वार्फ़ विषाणु ·प्रभावित पत्तियों के आधार पर पीली धारियाँ विकसित हो जाती है। पत्तियाँ सिरे से शुरू होकर आधार की ओर बढ़ते हुए पीली हो जाती हैं।प्रभावित पत्तियाँ झुर्रीदार और चपटी दिखाई देती हैं।   वायरस मुक्त पौधों का प्रयोग करें।जियोलाइफ नो वायरस 3 – 5 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।रोगवाहक को नियंत्रित करने के लिए पुलिस कीटनाशक का 0.2 – 0.6 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आयरिश पीला धब्बा वायरस पत्तियों पर पीले या भूरे रंग की सीमाओं के साथ सूखे, भूसे के रंग के, भूरे, धुरी के आकार के घावों विकसित हो जाते हैं।इन घावों में हरे केंद्र की उपस्तिथि हो भी सकती एवं नहीं भी हो सकती है।  हर 3 साल में फसल चक्र को अपनाएँ।खर-पतवारों को हटाएं। टेरा विरोकिल को 3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

प्याज की फसल की कटाई

प्याज की कटाई का समय फसल की परिपक्वता पर निर्भर करता है। जब प्याज के पत्ते 50-70% तक पीले होकर नीचे गिरने लगते हैं, तब फसल कटाई के लिए तैयार होती है। आमतौर पर रबी प्याज की कटाई अप्रैल से मई, और खरीफ प्याज की कटाई सितंबर से अक्टूबर के बीच की जाती है। कटाई के लिए मौसम सूखा और धूप वाला होना चाहिए, ताकि कटाई के बाद प्याज को तुरंत सुखाया जा सके। कटाई से 4-5 दिन पहले फफूंदनाशक स्प्रे (जैसे मैन्कोजेब या बाविस्टिन) कर देना चाहिए, जिससे कंदों को कटाई के बाद सड़न और फफूंद से बचाव मिल सके। कटाई हमेशा सुबह या शाम के समय करें जब तापमान कम हो।

प्याज की खेती कैसे की जाती है
प्याज की खेती कैसे की जाती है

प्याज सुखाना (Curing)

प्याज की कटाई के बाद सुखाना (Curing) एक जरूरी प्रक्रिया है जिससे प्याज के कंद लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं। कटाई के बाद प्याज को खुले, छायादार और हवादार स्थान पर 10-15 दिन तक सुखाया जाता है। इस दौरान कंद की बाहरी परत सूखकर कठोर हो जाती है, जो उसे सड़न से बचाती है। सुखाने के दौरान प्याज को सीधा सूर्यप्रकाश न दें क्योंकि इससे कंद फट सकते हैं या रंग खराब हो सकता है। पत्तियों को काटने की सही विधि यह है कि सुखने के बाद 2-3 सेमी लंबी डंठल छोड़कर पत्तियाँ काटी जाएँ। इससे कंद का सिरा सुरक्षित रहता है और भंडारण में नुकसान नहीं होता।

प्याज का भंडारण

प्याज का भंडारण एक संवेदनशील कार्य है। प्याज को हमेशा शीतल (ठंडा), शुष्क (सूखा) और हवादार स्थान में स्टोर किया जाना चाहिए। भंडारण के लिए जालीदार बोरियां या टोकरी का उपयोग करें ताकि हवा का प्रवाह बना रहे। भंडारण से पहले प्याज पूरी तरह सूखा हुआ होना चाहिए। कच्चा या गीला प्याज भंडारण में जल्दी खराब हो जाता है। सड़न और फफूंद से बचाव के लिए भंडारण कक्ष को साफ, कीट-मुक्त और अच्छी वेंटिलेशन वाला रखें। यदि संभव हो तो प्याज को ग्रेडिंग (छोटे-बड़े छांटना) कर के अलग-अलग भंडारण करें ताकि खराब होने की स्थिति में बाकी स्टॉक सुरक्षित रहे।

प्याज की आधुनिक खेती

प्याज की आधुनिक खेती (Modern Onion Farming) परंपरागत तरीकों की तुलना में कम लागत, अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करती है। इसमें वैज्ञानिक तकनीकों, उन्नत किस्मों और मशीनों का उपयोग कर फसल को रोगमुक्त और आर्थिक रूप से फायदेमंद बनाया जाता है।

आधुनिक खेती में ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण है, जिससे न केवल पानी की 30-40% तक बचत होती है, बल्कि खाद और दवाओं की लागत भी घटती है। इसके अलावा, मल्चिंग तकनीक अपनाने से खरपतवार कम होते हैं और मिट्टी की नमी बनी रहती है। बीज बोने के लिए लाइन सीडर मशीन और कटाई के लिए मेकनाइज्ड हार्वेस्टर भी अब किसानों को उपलब्ध हैं, जिससे श्रम और समय दोनों की बचत होती है।

आधुनिक प्याज खेती में मृदा परीक्षण, खाद का संतुलित प्रयोग, फफूंदनाशकों का समय पर छिड़काव, और फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी होता है। इसके साथ ही, किसान उन्नत किस्मों जैसे अग्रिकुलर K-55, नासिक रेड, पूसा रतन आदि का चयन कर सकते हैं जो जल्दी पकती हैं और बाजार में अच्छी कीमत दिलाती हैं।

सरकार द्वारा कई योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, सब्सिडी आधारित ड्रिप सिस्टम, और कृषि यंत्र अनुदान योजना के माध्यम से किसानों को आधुनिक खेती के लिए सहयोग दिया जा रहा है।

प्याज की खेती – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. प्याज लगाने का सबसे अच्छा महीना कौन सा है?

उत्तर: भारत में प्याज लगाने का सबसे अच्छा समय रबी फसल के लिए अक्टूबर से नवंबर और खरीफ फसल के लिए जून से जुलाई होता है।

2. प्याज की खेती कितने दिन में तैयार हो जाती है?

उत्तर: प्याज की फसल सामान्यतः 90 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है, लेकिन किस्म और मौसम के अनुसार यह अवधि थोड़ी बदल सकती है।

3. 1 बीघा में प्याज कितना निकलता है?

उत्तर: एक बीघा में प्याज की औसत उपज लगभग 100 से 120 क्विंटल तक हो सकती है, यदि उन्नत किस्में और सही तकनीकें अपनाई जाएं।

4. प्याज के बीज बोने का सबसे अच्छा महीना कौन सा है?

उत्तर: प्याज के बीज बोने का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है, जिससे पौधे ठंड में अच्छी बढ़वार करते हैं।

5. प्याज की उपज क्या है?

उत्तर: प्याज की उपज मिट्टी की उर्वरता, जल प्रबंधन, किस्म, और कीट-रोग नियंत्रण पर निर्भर करती है। औसतन 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है।

6. प्याज किस महीने में लगाई जाती है?

उत्तर: प्याज की बुआई खरीफ में जून-जुलाई और रबी में अक्टूबर-नवंबर महीने में की जाती है।

7. प्याज में अच्छी पैदावार के लिए क्या डालना चाहिए?

उत्तर: अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर, जिंक, और जैविक खाद (जैसे गोबर की खाद) का संतुलित प्रयोग आवश्यक है।

8. प्याज के लिए सबसे अच्छी खाद कौन सी है?

उत्तर: प्याज के लिए नाइट्रोजन (यूरिया), डीएपी, म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP), सल्फर युक्त खाद, और कंपोस्ट खाद सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

9. प्याज में जिंक कब डालना चाहिए?

उत्तर: प्याज की रोपाई के 25-30 दिन बाद जिंक सल्फेट (25 किग्रा प्रति हेक्टेयर) डालना चाहिए जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उत्पादन बढ़ता है।

10. प्याज को मोटा करने के लिए कौन सी खाद डालें?

उत्तर: प्याज की गांठ को मोटा करने के लिए पोटाश और सल्फरयुक्त खाद (जैसे SOP – सल्फेट ऑफ पोटाश) डालना फायदेमंद होता है।

11. प्याज में पोटाश कब डालना चाहिए?

उत्तर: पोटाश की पहली खुराक रोपाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी खुराक 45-50 दिन बाद डालनी चाहिए ताकि बल्ब मजबूत बने।

12. 45 दिन की प्याज में कौन सी खाद डालें?

उत्तर: 45 दिन की प्याज में SOP (सल्फेट ऑफ पोटाश), सल्फर और नीम कोटेड यूरिया का छिड़काव करना चाहिए ताकि फसल स्वस्थ रहे और गांठें अच्छी बनें।

13. प्याज में सल्फर कब देना चाहिए?

उत्तर: सल्फर प्याज की रोपाई के 30-35 दिन बाद देना चाहिए। यह प्याज की क्वालिटी, रंग और आकार सुधारने में मदद करता है।

14. प्याज लगाते समय कौन सी खाद डालनी चाहिए?

उत्तर: प्याज की बुवाई करते समय 10-15 टन गोबर की सड़ी खाद, 60-80 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश प्रति एकड़ देना चाहिए।


लेखक: पवन पाटीदार (10 वर्षों का कृषि अनुभव)
नोट: यह जानकारी आपके खेत की मिट्टी की जांच और मौसम के आधार पर थोड़ी अलग हो सकती है। हमेशा स्थानीय कृषि विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

निष्कर्ष

प्याज की खेती एक लाभदायक व्यवसाय है, लेकिन इसकी सफलता सिंचाई, कटाई, सुखाने और भंडारण जैसे महत्वपूर्ण चरणों पर निर्भर करती है। यदि किसान सही समय पर फसल की देखभाल, कटाई से पहले फफूंद नियंत्रण, और कटाई के बाद अच्छी तरह सुखाकर सुरक्षित भंडारण करें, तो प्याज की लंबी अवधि तक गुणवत्ता बनी रहती है और बाजार में उच्च मूल्य मिलता है। सही तकनीकों को अपनाकर किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

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